बुधवार, 15 दिसंबर 2010
Anjaan ras
apne pass ..
मुझे मुझसे जोड़ देती है ,
खुद को भूलकर कभी जो
निकल भी जाऊ खुद से दूर
तो लौट के अपने पास चला आता हूँ.
मंगलवार, 14 दिसंबर 2010
main anjaan nahi
मैं अनजान नहीं
इस शहर में
न ही ये शहर अनजान है
मुझसे
घूमता हूँ अकेला
खोजता
अपनी मंजिल
गम की धुंध में दिखती
मेरी मंजिल
खुबसूरत
ठीक शहर क बीचोबीच
सफ़ेद मटमैले पथ्थरो
से सजी
छोटा कब्रिस्तान
सही जगह
अपनी मंजिल पे
कहता तो रहा
मैं अनजान नहीं
और न ही
ये शहर अनजान है मुझसे
शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010
Maa ne kaha tha
माँ ने कहा था
सबको समेत क चलना आसन नहीं होता
बड़े बच्चे के प्यार में छोटा है रोता
और अगर छोटे को दुलारा तो
बड़ा कभी भी पास नहीं होता,
पापा कहते रहे
खुशिया और फुर्सत साथ नहीं रहते
दो दिन की छुट्टियों में दो हाथ नहीं रहते
मालकिन और नोट दोनों अब दूर हो गए हैं
मेरे हैं, पर जैसे थोड़े मजबूर हो गए हैं
दोस्ती कहती रही
पांच छह सालो में तुमने झूट भी बोला
मेरे पीछे तुमने अपना मुह खोला
करोडो के घर में रखके मुझे कंगाल कर दिया
मेरी बात मनवा के मुझे बेहाल क्र दिया
माँ पापा दोस्ती को किनारे कर
सबको खुश करने चला गया
पहले खून फिर दिल और फिर कलेजा निकाल रा हूँ..
खुश हूँ की सबको संभाल रा हूँ
गिर गिर के संभल रा हूँ
मैं सबको लेके चल रा हूँ
Posted by Nripendra Tiwary at 7/30/2010 12:50:00 AM
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Bhawna 'SATHI' said...
achi kavita hai..sb ko khush nhi rakha ja skta hai.es liye kisi ek ko chun lo or jindgi usi ke liye ji lo..swagat hai aap ka es blog ki duniya me.