सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

Ek kutta

 हर बार रस भरी 
नई हड्डी की तलाश में 
हिन्दुओं की 
भोंकता 
सूँघता घूरता 
एक कुत्ता 
वफादार 
जनपथ की राहों पर 
आज भी 
गुलाम है अपनी मालिक का 
लगातार सुरसुरी 
हो गई है इन दिनों रुकता ही नहीं..
बस भोक्ता है
जनपथ की सूनी 
राहों से आज भी 
और शोर करता है 
मेरे भीतर तक 
रहते हुए 
वो 
मेरी दिल्ली में .


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें