सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

LAAL MEHANDI

अभी तो मेरे हाथ मासूम से थे 
तेरी नज़रो में 
रोज़ इनमे अपनी तस्वीर
 देखते थे तुम
मेहंदी कि महक लेते थे 
अपनी चेहरे मेरे हाथो से ढककर
सहसा देखकर मेरी तरफ
 कहा करते थे कि
गर्म चाय कि प्याले क्यों पकडती हो 
इस तरह 
सुबह सुबह 
आज क्या हो गया तुम्हे
जो इन्ही हाथो से 
मुझे मेरे घर से निकाल दिया मुझे 
मेरे वजूद को कतम करके 
मेरी हाथो कि तो 
अभी मेहंदी भी नहीं छूटी थी 
वो भी लाल है अव कई टुकडो में .





 
 

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