अभी तो मेरे हाथ मासूम से थे
तेरी नज़रो में
रोज़ इनमे अपनी तस्वीर
देखते थे तुम
मेहंदी कि महक लेते थे
अपनी चेहरे मेरे हाथो से ढककर
सहसा देखकर मेरी तरफ
कहा करते थे कि
गर्म चाय कि प्याले क्यों पकडती हो
इस तरह
सुबह सुबह
आज क्या हो गया तुम्हे
जो इन्ही हाथो से
मुझे मेरे घर से निकाल दिया मुझे
मेरे वजूद को कतम करके
मेरी हाथो कि तो
अभी मेहंदी भी नहीं छूटी थी
वो भी लाल है अव कई टुकडो में .
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