बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

वलेंतिने दिवस

शब्दों के हेर फेर और
ऊँची उड़ान से कुछ नहीं मिलता
गाली और कव्वाली के बिना.
आज कुछ कव्वाल मुरझाये
झुंझलाए पड़े थे ..
दिल्ली मेट्रो , कोलेजो और
माल के बाहर
अपने कव्वाली के इंतज़ार में
और कव्वाली
जो शायद ज्यादा ही दिख रही थी
लाल गुलाबो के झंझार में .
जो भी था
गाली और कव्वाली 
खुबसूरत थी...
तडपती कराहती
एक लपलपाहट में
अपने अस्तित्व को दिखाती ..
वलेंतिने दिवस पे...

शब्दों के हेर फेर और
ऊँची उड़ान से कुछ नहीं मिलता
गाली और कव्वाली के बिना.
आज कुछ कव्वाल मुरझाये
झुंझलाए पड़े थे ..
दिल्ली मेट्रो , कोलेजो और
माल के बाहर
अपने कव्वाली के इंतज़ार में
और कव्वाली
जो शायद ज्यादा ही दिख रही थी
लाल गुलाबो के झंझार में .
जो भी था
गाली और कव्वाली 
खुबसूरत थी...
तडपती कराहती
एक लपलपाहट में
अपने अस्तित्व को दिखाती ..
वलेंतिने दिवस पे...

नीर